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लेखनी कहानी -24-Jul-2022 गीत : तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है

गीत :

सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है

सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है
खामोश जुबां  बेजान  बांहों से डर  लगता है

जब  तुम  झाड़ू  लगाकर  पोंछा  लगाती हो
पूरे घर  में स्वयं अघोषित  कर्फ्यू  लगाती हो
उस गीले फर्श पर पांव रखने में डर लगता है
सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है

जब तुम नहाने के लिए बाथरूम में जाती हो
धोने हेतु हमारे सारे  कपड़े साथ ले जाती हो
केवल तौलिये में बाहर  आने में डर लगता है
सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है

जब तुम  किसी  पार्टी में मेरे  साथ  जाती हो
उसी पार्टी में मेरी  कोई कुलीग मिल जाती हो
उससे खुलकर कहकहे लगाने में डर लगता है
सुनो  प्रिये तुम्हारी उन आंखों  से डर लगता है

जब मेरे दोस्त कोई पार्टी का आयोजन करते हैं
दो चार घूंट  बीयर मुझे भी  जबरन पिला देते हैं
फिर  घर की दहलीज  पर आने में  डर लगता है
सुनो  प्रिये  तुम्हारी  उन आंखों  से डर  लगता है

जब किसी बात पर हम दोनों तकरार करते हैं
छत्तीस  के अंक में  सोने का  प्रयास  करते हैं
तकिये  से बनाई दीवार गिराने में डर लगता है
सुनो प्रिये  तुम्हारी उन आंखों  से डर  लगता है

श्री हरि
24.7.22


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8 Comments

Gunjan Kamal

24-Jul-2022 09:17 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌

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Madhumita

24-Jul-2022 08:57 PM

बहुत सुंदर

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Milind salve

24-Jul-2022 08:32 PM

बहुत खूब

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